क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है? – विधवा स्त्री से जुड़े कुछ अहम प्रश्नों के जवाब – जब किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती हैं तो उसे विधवा कहते हैं। विधवा स्त्री का जीवन संघर्ष से भरा होता हैं। आज की इस आधुनिक समाज में भी विधवा स्त्री को गलत दृष्टि से देखा जाता हैं। समाज में विधवा स्त्री को वह सम्मान नहीं मिलता हैं जो एक सुहागन स्त्री को मिलता हैं। जब किसी स्त्री के पति की किसी कारण वश मृत्यु हो जाती हैं तो उसका सारा दोष उसकी पत्नी पर मढ दिया जाता हैं।
पति की मृत्यु के पश्चात ससुराल में विधवा स्त्री को सम्मान और इज्जत नसीब नहीं होता हैं। कई ऐसे केसेज अक्सर सामने आते हैं जिसमें देखा गया हैं की पति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को मारपीटकर घर से बाहर निकाल दिया जाता हैं। हालांकि यह जरुरी नहीं की सभी के ससुराल वाले ऐसा करते हो।
पति के मृत्यु के बाद विधवा स्त्री से उसकी आजादी छीन ली जाती हैं। उसपर कई ऐसी पाबंदिया लगा दी जाती हैं जिसके चलते विधवा स्त्री मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होती हैं। विधवा होने के बाद स्त्री से बिंदी और सिंदूर लगाने के अधिकार को भी छीन लिया जाता हैं। विधवा स्त्री को चमकदार कपड़े और गहने आदि पहनने नहीं दिया जाता हैं। हालांकि अब काफी बदलाव आया हैं। रूढि़वादी परम्पराएं अब टूट रही हैं। आइए अब आपके सवाल ” क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है? ” का जवाब विस्तार से देते हैं।
क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है?
अक्सर पति के मृत्यु के बाद यह सवाल उठता हैं की क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है? . सिंदूर का अर्थ सुहाग से हैं। सिंदूर प्रेम का प्रतिक हैं। स्त्री सिंदूर इसलिए लगाती हैं ताकि उसके पति की उम्र बढ़ें। हिन्दू धर्म में सिंदूर को विवाहित होने का प्रमाण माना जाता हैं। हर विवाहित स्त्री सिंदूर जरुर लगाती हैं। सनातन धर्म में भगवान श्री राम की धर्म पत्नी माता सीता भी सिंदूर लगाती थी। रामायण में इसका वर्णन हैं। उसी तरह हाथों में चूड़ियाँ और माथे पर बिंदी का भी रिवाज हैं।
जब स्त्री विधवा होती हैं तो समाज की रुढ़िवादी सोच उसे अपना शिकार बनाना शुरू कर देती हैं। विधवा स्त्री को बेरंग कपड़े धारण करने के लिए फ़ोर्स किया जाता हैं। स्त्री को अपने मनपसन्द कपड़े और श्रृंगार करने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी जाती हैं। गाँव में आज भी यह कुप्रथा चल रही हैं। इन सबका दोषी आज का हमारा शिक्षित कहा जाने वाला समाज हैं।
हिन्दू धर्म में अविवाहित स्त्री भी बिंदी लगाती हैं। इसलिए पति की मृत्यु के बाद विधवा स्त्री भी बिंदी लगा सकती हैं। बिंदी का पति के होने या न होने से कोई संबंध नहीं हैं। अगर सच कहा जाएं तो पुरुष कभी भी इसका विरोध नहीं करते हैं। किसी ने सही कहा हैं की स्त्रियां ही स्त्रियों की दुश्मन होती हैं। इन कुप्रथाओं को स्त्रियां ही अपने अगले वंश तक ढोती रहती हैं। हिन्दू धर्म के मुख्य शास्त्रों में विधवा स्त्री पर किसी तरह की पाबंदियों की बात नहीं लिखी गयी हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सिंदूर में मौजूद हल्दी, चूना और मरकरी महिलाओं की उत्तेजना को बढाता हैं इसलिए सिंदूर न लगाने की सलाह दी जाती हैं। हालांकि बिंदी लगाने में किसी प्रकार की समस्या नहीं हैं।
विधवा स्त्री के बिंदी और सिंदूर लगाने पर कोर्ट ने क्या कहा जाने
हाल ही में कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया हैं की सिंदूर या बिंदी वे महिलाएं भी लगा सकती हैं जो अपने पति से अलग रहती हैं या पति की मृत्य हो गयी हैं। दरसल सिंदूर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा हैं। जब किसी महिला के मांग में सिंदूर होता हैं तो लोग उस महिला को अलग दृष्टि से देखते हैं। महिला के अंदर से सुरक्षित महसूस करती हैं। चूंकि एक विधवा महिला को लोग गलत दृष्टि से देखते हैं इसलिए लोगों की घूरती निगाहें उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर करती हैं।
ऑफिस हो या घर हर जगह उन पर कमेंट किये जाते हैं। इसलिए अपने आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए वो महिलाएं भी सिंदूर लगा सकती हैं जो तलाक शुदा हैं या फिर विधवा हैं। अभिनेत्री रेखा भी पति की मृत्य के बाद मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगाती थी। महाराष्ट्र के कई गावों में भी इस प्रकार की कुप्रथा पर रोक लगा दी गयी हैं।
पहले के समय में विधवा स्त्री को दूसरी शादी का अधिकार नहीं था। पति की मृत्यु के बाद भी स्त्रियां अपना सारा जीवन चुप-चाप एकांत में बेरंग गुजारती थी। कहा जाता था की पति के मृत्यु के बाद सफ़ेद साड़ी पहनना और श्रृंगार न करना स्त्री को ईश्वर के करीब करता हैं। लेकिन सच तो यह हैं की कपड़े और श्रृंगार का ईश्वर की भक्ति से कोई संबंध ही नहीं हैं। ईश्वर से जुड़ाव के लिए मन से शुद्ध होना जरुरी हैं। सच्ची श्रद्धा और अच्छे कर्म ही व्यक्ति को ईश्वर के करीब ला सकता हैं।
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क्या विधवा स्त्री तुलसी की पूजा कर सकती है
जी हाँ, विधवा स्त्री तुलसी की पूजा कर सकती हैं। शास्त्रों में भी किसी तरह के प्रतिबंध की बात नहीं लिखी गयी हैं। विधवा स्त्री एकादशी का व्रत करती हैं जिसमें तुलसी जी की पूजा अनिवार्य मानी जाती हैं। अत: कोई भी विधवा स्त्री रोज सुबह उठकर तुलसी जी को जल दे सकती हैं। पूजा करने का अधिकार हर किसी को हैं। कुछ कुप्रथाएं आज भी चल रही हैं जिसे समाप्त करना अति आवश्यक हैं।
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क्या विधवा स्त्री हवन कर सकती है
मान्यता हैं की स्त्री सुहागन भी हो तो पति की उपस्थिति के बिना हवन नहीं कर सकती हैं। हालांकि हिन्दू धर्म ग्रंथों में इसके बारें में कुछ भी प्रमाण नहीं मिलता हैं। माना जाता हैं की स्त्री और पुरुष दोनों जब एक साथ हवन करते हैं तो हवन का लाभ मिलता हैं। इसी कारण विधवा स्त्रियों को हवन न करने की सलाह दी जाती हैं क्योकिं हवन का लाभ प्राप्त नहीं होता हैं। हालांकि आज के समय में स्त्रियां भी अकेली हवन करती दिखाई देती हैं। शास्त्रों में विधवा स्त्री के हवन करने या न करने के बारें में कुछ भी नहीं लिखा गया हैं। इसलिए यह पूरी तरह से आप पर डिपेंड करता हैं।
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निष्कर्ष – क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है?
दोस्तों, आज की मैंने आपके सवाल ” क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है? “का विस्तार पूर्वक जवाब दिया हैं। आज भी कुछ कुप्रथाएं हैं जो स्त्री को हमेशा अपमानित करते रहने के लिए जिन्दा रखें गए हैं। स्त्री और पुरुष दोनों को किसी भी कार्य को सम्पादित करने का समान अधिकार हैं। अगर पुरुष विधुर होने के बाद तिलक लगा सकता हैं तो विधवा स्त्री बिंदी क्यों नहीं लगा सकती हैं। आप बेझिझक बिंदी लगा सकती हैं। विधवा स्त्री पूजा-पाठ के कार्यों में ठीक उसी तरह संलिप्त हो सकती हैं जिस तरह एक सुहागन स्त्री होती हैं।
मुझे आशा हैं की आपको आज की यह लेख ” क्या विधवा स्त्री बिंदी लगा सकती है? ” बेहद अच्छी लगी होगी। इस जानकारी को सोशल मीडिया पर जरुर से जरुर शेयर करें।
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