जनेऊ अशुद्ध कब होता है – पहनने और उतारने के नियम

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जनेऊ अशुद्ध कब होता है – पहनने और उतारने के नियम – जनेऊ को उपनयन संस्कार और यज्ञोपवीत भी कहा जाता हैं। हिन्दू धर्म में इस संस्कार का विशेष महत्त्व हैं। जनेऊ संस्कार के बाद ही विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधा जा सकता हैं। संस्कार के पश्चात ही व्यक्ति जनेऊ को धारण कर सकता हैं। जनेऊ में मुख्यत: तीन ही धागे होते हैं जो त्रिदेवों के प्रतिक हैं। यज्ञोपवीत होने के बाद जनेऊ धारण करना अनिवार्य हैं। लेकिन धारण करने के साथ ही नियमों का पालन करना भी उतना ही अनिवार्य हैं। शास्त्रों में जनेऊ पहनने और उतारने के नियम बताए गए जिसका पालन हर किसी को करना पड़ता हैं। जो लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं उनके जीवन में समस्यायों का ऐसा दौड़ आता हैं जिससे पीछा छुड़ा पाना असंभव सा लगने लगता हैं। जनेऊ अशुद्ध कब होता है नीचे विस्तार से बताया गया हैं।

जनेऊ अशुद्ध कब होता है - पहनने और उतारने के नियम
जनेऊ अशुद्ध कब होता है – पहनने और उतारने के नियम

जनेऊ पुरुष और महिला दोनों ही धारण कर सकते हैं। परन्तु अविवाहित और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली स्त्री ही जनेऊ धारण करती हैं। हिन्दू धर्म में सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का ही उपनयन संस्कार होता हैं। सामान्यत: जनेऊ में तिन या छ: धागे होते हैं। विवाह के उपरांत छ: धागे वाले जनेऊ पहनने की सलाह दी जाती हैं। दरसल अतिरिक्त तिन धागे अर्धांगिनी के लिए होता हैं। जनेऊ धारण करने के पहले और बाद में नियमों का पालन न करने से जनेऊ अशुद्ध हो जाता हैं। तो आइए जानते हैं की जनेऊ अशुद्ध कब होता है और इसे पहनने और उतारने के नियम क्या हैं।

जनेऊ अशुद्ध कब होता है

जैसा की आप जानते हैं की जनेऊ के बाद ही व्यक्ति हवन कर सकता हैं। जनेऊ संस्कार की न्यूनतम आयु 9 वर्ष हैं। इससे पहले किसी भी बच्चे का उपनयन संस्कार नहीं हो सकता हैं। शास्त्र कहते हैं की जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को कभी भी नियमों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए अन्यथा जनेऊ अशुद्ध हो जाता हैं। इसे धारण करने से पापी व्यक्ति को भी सद्बुद्धि आती हैं उसका बल कई गुणा तक बढ़ जाता हैं। मन में गलत विचार आने बंद होते हैं। अच्छे कर्म करने की शक्ति मिलती हैं।

शास्त्र के अनुसार, विद्या ग्रहण, पूजा-पाठ, हवन और परिवार का दायित्व उठाना आदि कार्य बिना जनेऊ धारण किये करना व्यर्थ हैं। क्योकि व्यक्ति का मन बिना जनेऊ धारण किये स्थिर नहीं हो सकता हैं। समस्त पाप कर्म और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाले जनेऊ को धारण करना हर किसी के लिए अनिवार्य हैं। कुछ लोग जनेऊ धारण तो करते हैं परन्तु लेकिन सभी नियमों का पालन नहीं करते हैं। शास्त्रों में लिखा हैं की जो लोग उपनयन संस्कार के नियमों का पालन नहीं करते हैं उनका जनेऊ अशुद्ध हो जाता हैं। जनेऊ निम्नलिखित स्थितियों में अशुद्ध होता है :-

  • जनेऊ धारण कर बुरे कर्म में संलिप्त होने से जनेऊ अशुद्ध होता हैं।
  • शौच के वक्त जनेऊ को को दाएं कान पर न चढाने से जनेऊ अशुद्ध होता हैं।
  • धारण करने बाद इसे अकारण बार-बार उतारने से भी यह अशुद्ध होता हैं।
  • गंदे और अपवित्र हाथों के स्पर्श से भी यह अशुद्ध होता हैं।
  • टुटा हुआ जनेऊ भी अशुद्ध ही माना जाता हैं।
  • ग्रहण के उपरांत धारण किया गया जनेऊ अपवित्र माना जाता हैं।

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जनेऊ पहनने के नियम

जनेऊ वही व्यक्ति पहन सकता हैं जिसका उपनयन संस्कार हो चूका हैं। अगर आपका उपनयन संस्कार हो चूका हैं तो जनेऊ पहनने के नियम का ज्ञात होना आवश्यक हैं। जनेऊ को हमेशा लेफ्ट कंधे के उपर रखकर राईट हैण्ड के नीचे डाला जाता हैं। जनेऊ पहनते वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें।

  • जनेऊ को पहनने से पहले हल्दी लगाकर शुद्ध करें।
  • उसके बाद इसे गले में डालकर दाएं हाथ के नीचे करें।
  • पहनते वक्त ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात् – आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः मंत्र का जाप अवश्य करें।

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जनेऊ धारण करने के बाद के नियम

जनेऊ उसी व्यक्ति को धारण करना चाहिए जो सभी नियमों का पालन पवित्रता के साथ कर सकता हैं। जनेऊ धारण करने के बाद मांस-मदिरा का सेवन वर्जित हैं। अगर आप जनेऊ धारण करते हैं तो निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें।

जनेऊ धारण करने के बाद के नियम
जनेऊ धारण करने के बाद के नियम
  • जनेऊ पहनने वाले व्यक्ति को लैट्रिन जाने से पूर्व ही दाहिने कान पर इसे लपेटना अनिवार्य हैं। अन्यथा जनेऊ अशुद्ध हो जाता हैं।
  • किसी कारण वश जनेऊ टूटने पर पूर्णिमा को यह बदला जा सकता हैं।
  • जनेऊ को गंदे हाथों से छूना वर्जित हैं। गंदे होने पर इसका प्रभाव नष्ट हो जाता हैं।
  • नहाते वक्त या संबंध बनाते वक्त भी इसे गले से नहीं निकाला जाना चाहिए।
  • अगर आप इसे धोना चाहते हैं तो गले में ही इसे जल की सहायता से धोएं।
  • जनेऊ धारण करने के बाद इसे तभी उतारा जाना चाहिए जब पूर्णिमा या अमावस्या हो।
  • घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर जनेऊ अशुद्ध हो जाता हैं। ऐसे में इसे बदलना जरुरी हैं।

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जनेऊ उतारने की विधि

अगर आपके द्वारा धारण किया गया जनेऊ खंडित हो गया हैं या फिर आप पूर्णिमा के दिन इसे बदलना चाहते हैं तो तो गंगा जल लेकर सर्वप्रथम खुद को शुद्ध करें। उसके बाद एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम् मन्त्र का जप करें। परन्तु अगर आप किसी ब्राह्मण द्वारा इस विधि को करेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी नदी में खड़े होकर जनेऊ उतारने की विधि को करना सबसे श्रेष्ठ हैं।

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जनेऊ किस दिन धारण करना चाहिए

जनेऊ आपको पूर्णिमा के दिन या ग्रहण लगने के पश्चात किसी भी दिन बदल सकते हैं। इसके अलावे किसी करीबी की मृत्यु में शामिल होने के बाद भी पुराना जनेऊ उतारकर दूसरा जनेऊ धारण कर लेना चाहिए।

जनेऊ पहनने के बाद क्या नहीं करना चाहिए

जनेऊ पहनने के बाद क्रोध, इर्ष्या और द्वेष जैसे भावों को दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। जनेऊ सकारात्मकता को आकर्षित करता हैं। इसलिए बुरे भावों से दूर रखने में यह काफी मदद करेगा। इसके अलावे मांस का सेवन भी जनेऊ पहनने के बाद पूर्णत: वर्जित हैं। धर्म विरुद्ध कोई भी कार्य जनेऊ धारण करने के बाद कभी भी नहीं करना चाहिए। यह भी ध्यान रखें की शौच जाने और सम्बन्ध बनाने के वक्त जनेऊ दाएं कान पर ही होना चाहिए।

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निष्कर्ष – जनेऊ अशुद्ध कब होता है

इस पोस्ट ” जनेऊ अशुद्ध कब होता है – पहनने और उतारने के नियम ” में मैंने विस्तार से जनेऊ धारण करने के नियमों के बारें में बताया हैं। जनेऊ धारण कर नियमों का पालन करना हर किसी के लिए संभव नहीं हैं। क्योकि नियमों का पालन वही कर सकता हैं जिसका मन और शरीर पूर्णत: शुद्ध हो। अगर आप नियमों का पालन कर सकने में असमर्थ हैं तो इसे धारण न ही करें तो अच्छा हैं।

मुझे उम्मीद हैं की यह लेख ” जनेऊ अशुद्ध कब होता है ” इसकी जानकारी आपके काम आएगी। इस लेख को जितना अधिक शेयर कर सकते हैं जरुर करें।

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